कुछ रोचक 07 Animal Facts जो आपको किताबों में नही मिलेगें
1. बाघ का वैज्ञानिक नाम पेंथेरा टिग्रिस है। यह भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। बाघ शब्द संस्कृत के व्याघ्र का तदभव रूप है।
2. भारत के बाघ को एक अलग प्रजाति माना जाता है, जिसका वैज्ञानिक नाम है पेंथेरा टाइग्रिस टाइग्रिस।
3. बाघ की नौ प्रजातियों में से तीन अब विलुप्त हो चुकी हैं।
4. एक आंकड़े के अनुसार 1800 से लेकर 2009 तक बाघों ने 3,73,000 मनुष्यों की जान ली है |
5. विश्व का सबसे छोटा साँप थ्रेड स्नेक होता है। जो कैरेबियन सागर के सेट लुसिया माटिनिक तथा वारवडोस आदि द्वीपों में पाया जाता है वह केवल 10-12 सेंटीमीटर लंबा होता है।
6. कुछ प्रागैतिहासिक प्रजातियां आकार में व्यस्क मानव जितनी उंची तथा वजनी थीं (अधिक जानकारी के लिए नीचे देखें). ये प्रजाति अंटार्कटिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं थी; बल्कि इसके विपरीत, अंटार्कटिक उपमहाद्वीप के क्षेत्रों में ज्यादा विविधता मिलती थी और कम से कम एक विशाल पेंगुइन उस क्षेत्र में मिला है जो भूमध्य रेखा के 35 से 2000 किमी दक्षिण से ज्यादा दूर नहीं था तथा जहां का वातावरण आज के अपेक्षाकृत ज्यादा गरम था।
7. पेंगुइन को इंसानों से कोई विशेष डर नहीं लगता है और वे बिना हिचकिचाहट के खोजकर्ताओं के समूहों के पास आते हैं। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि जमीन पर पेंगुइन का अंटार्कटिक या पास के अपतटीय टापुओं पर कोई शिकारी नहीं है।
1. बाघ का वैज्ञानिक नाम पेंथेरा टिग्रिस है। यह भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। बाघ शब्द संस्कृत के व्याघ्र का तदभव रूप है।
2. भारत के बाघ को एक अलग प्रजाति माना जाता है, जिसका वैज्ञानिक नाम है पेंथेरा टाइग्रिस टाइग्रिस।
3. बाघ की नौ प्रजातियों में से तीन अब विलुप्त हो चुकी हैं।
4. एक आंकड़े के अनुसार 1800 से लेकर 2009 तक बाघों ने 3,73,000 मनुष्यों की जान ली है |
5. विश्व का सबसे छोटा साँप थ्रेड स्नेक होता है। जो कैरेबियन सागर के सेट लुसिया माटिनिक तथा वारवडोस आदि द्वीपों में पाया जाता है वह केवल 10-12 सेंटीमीटर लंबा होता है।
6. कुछ प्रागैतिहासिक प्रजातियां आकार में व्यस्क मानव जितनी उंची तथा वजनी थीं (अधिक जानकारी के लिए नीचे देखें). ये प्रजाति अंटार्कटिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं थी; बल्कि इसके विपरीत, अंटार्कटिक उपमहाद्वीप के क्षेत्रों में ज्यादा विविधता मिलती थी और कम से कम एक विशाल पेंगुइन उस क्षेत्र में मिला है जो भूमध्य रेखा के 35 से 2000 किमी दक्षिण से ज्यादा दूर नहीं था तथा जहां का वातावरण आज के अपेक्षाकृत ज्यादा गरम था।
7. पेंगुइन को इंसानों से कोई विशेष डर नहीं लगता है और वे बिना हिचकिचाहट के खोजकर्ताओं के समूहों के पास आते हैं। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि जमीन पर पेंगुइन का अंटार्कटिक या पास के अपतटीय टापुओं पर कोई शिकारी नहीं है।
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